Saturday, December 31, 2011

 ३१ दिसंबर २०११

आज फिर दिल उदास है, ३१ दिसंबर को फिर एक आस है,
जाने वाले  साल ने  क्या कुछ नहीं दिया क्या ये कम ख़ास है,

कैसे बिताये है इस चार दीवारों के बीच में रह कर एक साल हरीश
कैसे भूल सकते है इस जाने वाले साल को जो अपने लिए एक इतिहास है 
दिन तो गुजर जाता है परन्तु साम तन्हाई से भरा हुआ 
इन चार दीवारों के बीच घुटन सी महसूस होती है 
आज फिर दिल उदास है, ३१ दिसंबर को फिर एक आस है
किसी को देखने को मन करे सिर्फ उसे देखता रहूँ 
Happy. Year Ending  


Sunday, December 4, 2011

 आज तक बहुत कुछ खोया है हमने
आज तक बहुत कुछ खोया है हमने ,
लेकिन आज कुछ पाने को दिल चाहता है ,
हर हालात को ख़ुशी से कबूल किया है हमने ,
लेकिन आज उनसे लड़ने को दिल चाहता है,
अब तक तनहा थे जिंदिगी में हम,
लेकिन अब किसी को अपना बनाने को दिल चाहता है ,
ना जाने कब से नहीं सोये है हम,
लेकिन आज जी भर के सोने को दिल चाहता है ,
चलते - चलते बहुत थक गए है हम ,
लेकिन आज एक जगह रुक जाने को दिल चाहता है,
अब तक हर कदम रखा है हमने सम्हाल के ,
लेकिन आज बहक जाने को दिल चाहता है,
हर कोई छोड़ जाता है बीच राह में हमें ,
लेकिन आज सबको तनहा छोड़ जाने को दिल चाहता है ,

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ में ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा ,
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा ,

जीवन का एक ऐसा साथी है,
जो दूर होके पास नहीं
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मै
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

हरीश मासूम विश्वकर्मा