Wednesday, February 2, 2011

 जिंदिगी तनहा 
दिन गुजरता नहीं है लोगों में 
रात होती नहीं हा बस तनहा 
हमने दरवाजे तक तो देखा था 
फिर ना जाने कोई किधर तनहा 
काफिला साथ और सफ़र तनहा 
जिन्दगी हुई बसर तनहा

हरीश विश्वकर्मा

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