Monday, October 24, 2011


तुम्ही से मेरा चाँद खिले 
तुम्ही से चाँदनी मिले 
तुम्ही से सुबह हो मेरी 
तुम्ही से मेरी शाम ढले 
तुम्ही से महके हर कली 
तुम्ही से मेरे फूल खिले 
तुम्ही तो अपने हो मेरे 
तुम्ही से है सब गिले 
तुम्ही तो चाहत हो मेरी 
तुम्ही से मेरा दिल मिले 
तुम्ही से जिंदिगी है  मेरी
तुम्ही से है मेरी ये शिलशिले
जब तुझी से ही मेरी सब कुछ मिले 
फिर क्यूँ ना ....... 
हरिश्चंद्र विश्वकर्मा  

Wednesday, October 5, 2011

नवरात्र 

मैली चादर ओढ़ के कैसे 
द्वार तुम्हारे आऊँ 
हे पवन परमेश्वर मेरे 
मन ही मन शरमाऊँ 
मैली चादर ओढ़ के कैसे ........ 

तुने मुझको जग में भेजा 
निर्मल देकर काया  
आकर इस संसार में मैंने 
इसको दाग लगाया 
जनम जनम की मैली चादर 
कैसे दाग छोढाऊँ
मैली  चादर ओढ़ के कैसे....... 

इन पैरों से चलकर तेरे 
मंदिर कभी ना आया 
जहां जहां हो पूजा तेरी 
कभी ना शीश झुकाया 
हे हरिहर मई  हार के आया 
अब क्या हार चढाऊं
मैली चादर के ओढ़ के कैसे .....

Harishchand Vishwakarma