Monday, October 24, 2011


तुम्ही से मेरा चाँद खिले 
तुम्ही से चाँदनी मिले 
तुम्ही से सुबह हो मेरी 
तुम्ही से मेरी शाम ढले 
तुम्ही से महके हर कली 
तुम्ही से मेरे फूल खिले 
तुम्ही तो अपने हो मेरे 
तुम्ही से है सब गिले 
तुम्ही तो चाहत हो मेरी 
तुम्ही से मेरा दिल मिले 
तुम्ही से जिंदिगी है  मेरी
तुम्ही से है मेरी ये शिलशिले
जब तुझी से ही मेरी सब कुछ मिले 
फिर क्यूँ ना ....... 
हरिश्चंद्र विश्वकर्मा  

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