हिमालय की गोंद में
हरीश
चाँद सी महबूबा हो, मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
हाँ तुम बलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था
चाँद सी महबूबा हो, मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
हाँ तुम बलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था
ना कसमे है न रश्मे है, ना सिक्वे है न वादे है..२
एक सूरत भोली भली है, दो नैना सीधे सादे है
दो नैना सीधे सादे है
ऐसा ही रूप ख्यालों में था , ऐसा मैना सोचा था
हाँ तुम बलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था
मेरी खुशियाँ ही न बाटे, मेरा गम भी सहना चाहे.....२
देखें ना ख्वाब महलों के, मेरे दिल में रहना चाहे
मेरे दिल में रहना चाहे
इस दुनिया में क्यू था ऐसा, जैसा मैना सोचा था
चाँद सी महबूबा हो, मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
हाँ तुम बलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था
हाँ तुम बलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था
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