३१ दिसंबर २०११
आज फिर दिल उदास है, ३१ दिसंबर को फिर एक आस है,
जाने वाले साल ने क्या कुछ नहीं दिया क्या ये कम ख़ास है,
कैसे बिताये है इस चार दीवारों के बीच में रह कर एक साल हरीश
कैसे भूल सकते है इस जाने वाले साल को जो अपने लिए एक इतिहास है
दिन तो गुजर जाता है परन्तु साम तन्हाई से भरा हुआ
इन चार दीवारों के बीच घुटन सी महसूस होती है
आज फिर दिल उदास है, ३१ दिसंबर को फिर एक आस है
किसी को देखने को मन करे सिर्फ उसे देखता रहूँ
Happy. Year Ending