Sunday, December 5, 2010

Sathi

तुमने चाहा ही नहीं हालातबदल सकते थे
तेरी आसूं मेरी आँखों से निकल सकते थे
तुम तो ठहरे रहे झील की पानी की तरह
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे
ज़ुबान ही सिर्फ एक दरिया नहीं
जो आप शब्दों को समझ पाएंगे
कभी आँखों में झांक कर देखिये
हजारों अल्फ़ाज़ खुद बा खुद विखर जायेंगे

Written by: - Harishchand V

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