लोग पीते है
लोग पीते है शराब मैखाने जा जा कर पी है , जो दो पल में उतर जाएगी
हमने तो पी है अपनी महबूब की आँखों से, जो उम्र भर ना उतर पायेगी..
पिलाना फ़र्ज़ था तो
पिलाना फ़र्ज़ था तो कुछ भी पीला दिया होता
शराब कम थी तो पानी मिला दिया होता
अगर जुबाँ पर शर्म ओ पहरा था,
मुस्करा कर सर ही हिला दिया होता
उम्मीद नहीं है फिर भी
उम्मीद नहीं है फिर भी जीये जा रहा हूँ
खली है बोतल फिर भी जीये जा रहा हूँ
पता नहीं ओ मिलेंगे या नहीं
इजहार ऐ मोहब्बत के लिए पिए जा रहा हूँ
मोहब्बत यहाँ बिकती है
मोहब्बत यहाँ बिकती है और इश्क नीलाम होता है,
भरोसे का कतल यहाँ खुले आम होता है,
ज़माने से ठोकर मिले तो चले हम मैखाने में,
और वही ज़माना हमें शराबी सरे आम कहता है!
Written by: - Harish chand Vishwakarma
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