दोस्ती
दो दिन के मेहमान बन के, वो अलविदा मुझे कह गये!
कुछ ना उससे पूछ सके, बस सोचते ही रह गये
वो भी गैर मै भी गैर, फिर भी किया मुझे कह गये!
दूर तो वो पहले ही थे, अब ना जाने कहाँ जाके बह गये!
हम बैठे थे उनकी राहों में, किसी और को सांथ ले गये!
उन के लिए रो भी नहीं सकते, जाते - जाते गैर मुझे कह गये!
उसे विदा करके हम, ना जाने चुप कैसे बैठ गये हम!
अफ़सोस ना हुआ उसे जाने का, भरी खुसी से बाय कह गये!
जहा भी रहो खुसी ही रहो, जन्नत तुझे मुबारक हो!
दोस्त - दोस्त कहते - कहते, अपनी दोस्ती भी साथ ले गये.........!
Written By: - Harish Chand Vishwakarma
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