तुमने चाहा ही नहीं हालातबदल सकते थे
तेरी आसूं मेरी आँखों से निकल सकते थे
तुम तो ठहरे रहे झील की पानी की तरह
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे
ज़ुबान ही सिर्फ एक दरिया नहीं
जो आप शब्दों को समझ पाएंगे
कभी आँखों में झांक कर देखिये
हजारों अल्फ़ाज़ खुद बा खुद विखर जायेंगे
Written by: - Harishchand V
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